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सोयाबीन की फसल

सोयाबीन फसल की सुरक्षा के उपाय

सोयाबीन फसल की सुरक्षा के उपाय

दोस्तों आज हम बात करेंगे सोयाबीन की फसल की सुरक्षा के बारे में, सोयाबीन की फसल किसानों के लिए बहुत ही ज्यादा उपयोगी होती है। ऐसे में इस फसल की सुरक्षा करना बहुत ही जरूरी है। 

सोयाबीन की फसल में विभिन्न प्रकार के रोग लग जाते हैं जिनके कारण फसल खराब होने का भय रहता है। जैसे सोयाबीन की फसल में कभी-कभी विनाशकारी सफेद मक्खी कीट का रोग लग जाता है, जिससे फसल पूरी तरह से बर्बाद हो जाती है। 

सोयाबीन की फसल को इस भयंकर कीटों से बचाव करने के लिए हमें विभिन्न प्रकार के तरीके अपनाने चाहिए। सोयाबीन की फसल से जुड़ी सभी प्रकार की आवश्यक बातों को जानने के लिए हमारे इस पोस्ट के अंत तक जरूर बने रहे।

सोयाबीन के फसल की खेती वाले राज्य :

सोयाबीन की खेती, किसान खरीफ के मौसम में करते हैं। खरीफ का मौसम सोयाबीन की खेती करने के लिए सबसे उत्तम होता है। बहुत से क्षेत्र हैं जहां सोयाबीन की खेती की जाती है। 

जैसे भारत में सोयाबीन की खेती महाराष्ट्र, राजस्थान मध्य प्रदेश में भारी मात्रा में उत्पादन की जाती है। यदि हम बात करें इनकी पैदावार की तो मध्यप्रदेश लगभग 45% का उत्पादन करती है। 

हीं दूसरी ओर महाराष्ट्र में यह लगभग 40% का भारी उत्पादन करती हैं। इसके अलावा और भी क्षेत्र हैं जहां सोयाबीन की खेती की जाती है। जैसे  बिहार आदि क्षेत्र सोयाबीन की खेती के लिए प्रमुख माने जाते हैं।

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सोयाबीन की खेती के लिए उपयुक्त भूमि का चुनाव:

किसानों के अनुसार सोयाबीन की फसल किसी भी भूमि पर आप आसानी से कर सकते हैं। परंतु  हल्की और रेतीली भूमि में सोयाबीन की खेती करना उपयुक्त नहीं होता है। 

सोयाबीन की फसल दोमट चिकनी मिट्टी में सबसे उत्तम होती है इन भूमि पर सोयाबीन की अधिक पैदावार होती है।

सोयाबीन की फसल में लगने वाले रोग:

सोयाबीन की फसल में सफेद मक्खी कीट तेजी से लग जाते हैं, यदि इनकी रोकथाम सही समय पर ना की जाए तो यह फसल को पूरी तरह से खराब कर देते हैं। बारिश के दिनों में सोयाबीन में पीला मोजेक रोग तथा सेमिलूपर कीट रोग का प्रभाव बन जाता है। यह रोग बारिश के मौसम में नमी के कारण पनपते हैं, ऐसे में यदि जल निकास की व्यवस्था को ठीक ढंग से न बनाया जाए, तो यह रोग पूरी फसल को तहस-नहस कर देते हैं।

सोयाबीन की फसल में सफेद मक्खी रोग के प्रभाव:

वैसे तो आकार में यह मक्खियां बहुत ही छोटी होती है। पर इनके आकार को देखकर आप इनकी शक्ति का अंदाजा नहीं लगा सकते हैं कि यह किस प्रकार से पूरी फसल को बर्बाद करती है। 

यह लगभग 8 मिमी की होती है, परंतु इनके कुप्रभाव से पूरी फसल बर्बाद हो जाती है, जिससे किसानों को बहुत हानि पहुंचती है। इन मक्खियों के शरीर तथा परो पर मोमी स्राव मौजूद होता है। 

यह सफेद मक्खियां खेतों के निचली सतह पर स्थित होती हैं और जब कभी आप खेतों को हिलाते डुलाते हैं तो यह उड़कर मंडराना शुरु कर देती हैं। ज्यादातर यह सफेद मक्खियां सूखी व गर्म स्थानों पर पनपती है।

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यह मक्खियां खेतों की निचली सतह पर रहकर अंडे भी उत्पादन करती है। यह सफेद नवजात शिशुओं को पैदा करती है जो दिखने में सफेद तथा अंडकार और हरे पीले होते हैं। 

इन सफेद मक्खियों की उत्पादकता को कम करने के लिए खेतों से घासफूस हटाना बहुत ही ज्यादा आवश्यक होता है, जिससे इन मक्खियों की आबादी को नियंत्रित किया जा सकता हैं। सोयाबीन की फसल में कुछ इस प्रकार से सफेद मक्खी रोग के कुप्रभाव पढ़ते हैं।

सोयाबीन की फसल को सफेद मक्खियों तथा कीट से बचाने के उपाय :

  • किसान सफेद मक्खियों के इस प्रकोप को नियंत्रण रखने के लिए सोयाबीन की रोगरोधी किस्म का इस्तेमाल करता है जो सफेद मक्खियों को अपनी ओर बढ़ने से रोकती है।
  • या सफेद मक्खियां नमी के कारण और ज्यादा पनपती हैं ऐसे में बारिश के दिनों में खेतों में जल निकास की व्यवस्था को सही ढंग से बनाए रखना चाहिए।
  • सोयाबीन की बुवाई सही समय पर करनी चाहिए। किसानों के अनुसार इसकी बुवाई ना बहुत देर में ना ही जल्दी, दोनों ही प्रकार से नहीं करनी चाहिए, उचित समय पर सोयाबीन की बुवाई करें।
  • उर्वरीकरण तथा पौधों में संतुलिता को बनाए रखने की कोशिश करें।
  • फसल की कटाई के बाद सभी प्रकार के पौधों के अवशेषों को जड़ से हटा दें। खरपतवार का खास ध्यान रखें।
  • फसल को सुरक्षित रखने के लिए कृषि विशेषज्ञों के अनुसार रासायनिक दवाओं का भी इस्तेमाल खेतों में करें।
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दोस्तों हम उम्मीद करते हैं कि आपको हमारा यह आर्टिकल सोयाबीन फसल की सुरक्षा के उपाय पसंद आया होगा। हमारे इस आर्टिकल में सोयाबीन की खेती से जुड़ी सभी प्रकार की आवश्यक जानकारियां मौजूद है जिससे आप लाभ उठा सकते हैं। 

यदि आप हमारी दी हुई जानकारियों से संतुष्ट हैं तो आप हमारे इस आर्टिकल को ज़्यादा से ज़्यादा अपने दोस्तों और सोशल मीडिया पर शेयर करें। धन्यवाद ।

किसानों में मचा हड़कंप, केवड़ा रोग के प्रकोप से सोयाबीन की फसल चौपट

किसानों में मचा हड़कंप, केवड़ा रोग के प्रकोप से सोयाबीन की फसल चौपट

जैसा कि आप सभी को पता होगा कि महाराष्ट्र सोयाबीन (soyabean) का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक राज्य है। विटामिन और प्रोटीन से भरपूर सोयाबीन स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से‌ गजब का फायदेमंद है। विश्वस्त सूत्रों द्वारा ज्ञात हुआ है कि वर्तमान समय में सोयाबीन को किसी की नजर लग गयी है। दरअसल, सोयाबीन की फसल पर केवड़े रोग (Bacterial blight of soybean) का भयानक प्रकोप हुआ है। अचानक ऐसी गंभीर, भयावह व दुर्लभ स्थितियों से सामना ‌करना किसानों को भारी‌ पड़ रहा है। संकट की‌ इस घड़ी में बौखलाए हुए किसानों ने जिला प्रशासन से मदद की गुहार लगायी है। आखिरकार, परिस्थितियों के मारे इन किसानों के पास अन्य कोई चारा भी तो नहीं है। ‌‌‌‌‌‌‌‌वैसे, खरीफ की फसल की स्थिति भी बहुत अच्छी नहीं है। बारिश की अनियमितता की वजह से किसानों का तो मानो सारा का सारा कारोबार ही ठप पड़ गया है। इन दिनों‌ किसान बेहद घाटे में चल रहे हैं। लगातार दिन रात अनवरत बारिश की वजह से खेती और खेतिहर दोनों ही बुरी तरह से आहत हुए हैं। दरअसल, किसान सोयाबीन की फसलों से काफी उम्मीदें लगाए बैठे थे। किंतु यहाँ तो पासा ही पलट गया है। केवड़ा (केवडा रोग) रोग के कीटों ने तो सोयाबीन की फसलों को पूर्ण रूप से ही बर्बाद कर के रख दिया है। किसानों के अनेकों बार जिला प्रशासन से गुहार लगाने के बावजूद अभी‌ तक कोई हल नहीं निकल पाया है। किंतु उम्मीद पर दुनिया कायम है। यथा शीघ्र कृषि क्षेत्र से संबंधित इन कठिन समस्याओं पर नियंत्रण अवश्य किया जाएगा। किसानों को निराश एवं हताश होने की आवश्यकता नहीं है। दरअसल कभी कभी‌ प्रकृति भी‌ बेरहम हो जाती है। अगर देखा जाए तो मौसम का भी‌ फसलों‌ पर जबरदस्त असर पड़ता है। सोयाबीन के फसलों से‌ किसान बहुत अच्छी कमाई कर लेते हैं। ‌‌‌‌‌लेकिन, वर्तमान परिस्थितियों के अवलोकन से ऐसा लगता है मानो इन किसानों के सारे किए कराये पर पानी फिर गया हो‌। कीटों से बचाव के लिए कृषि विभाग वालों ने आवश्यक निर्देश दिए हुए हैं।

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किसानों ने पौधों में दवाइयों के छिड़काव में कोई कसर नहीं छोड़ी है। किसान सचेत हैं। कहीं ना कहीं उन्हें भय है कि कहीं फसल फिर से दूसरी बार भी ना खराब हो जाए। किसानों ने केवड़ा रोग‌ के प्रकोप से निजात पाने के लिए कृषि विभाग से तथाकथित नुकसान के एवज में मुआवजे की मांग की है। जहाँ एक ओर केवड़ा रोग के प्रकोप से सोयाबीन की फसल बुरी तरह से ग्रस्त ‌है, वहीं दूसरी‌ ओर खरीफ की फसलों की स्थिति भी बहुत अच्छी नहीं है। जलवायु परिवर्तन के कारणों से अचानक इन फसलों पर कीट- फतिंगों की बाढ़ सी आ गयी है। कुल मिलाकर स्थिति बेहद चिंताजनक है। सोयाबीन के लहलहाते फूलों को देखकर किसानों के मन में उम्मीद‌ की एक छोटी सी‌ किरण जगी थी। किंतु, घनघोर बारिश और उस पर से पसीना छुड़ा देने वाली गर्मी की वजह से सब कुछ अनायास ही बर्बादी के कगार पर चला गया है। किसानों की स्थिति बेहद ही दयनीय हो चुकी‌ है।

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आपके जेहन में अब यह सवाल अवश्य उठ रहा होगा कि इतना सब कुछ बिगड़ जाने के बावजूद भी जिला प्रशासन आखिर खामोश क्यों है ??? पर, ऐसा कुछ भी‌ नहीं है। कृषि विभाग वालों ने किसानों को आश्वासन दे दिया है। सही समय में, सही स्थान पर, कृषि विभाग द्वारा अनुमोदित दवाइयों को ही छिड़काव करने का निर्देश जारी‌ किया गया है। कृषि विभाग द्वारा उपलब्ध कराए गये प्रमाणित खाद एवं बीजों को ही इस्तेमाल करने की सलाह दी गयी है।‌ संक्रमित फसलों को हटाकर कहीं अन्यत्र फेंकने का प्रावधान किया गया है। दरअसल, बारिश के मौसम में साफ सफाई के बिना गंदगी में किटाणुओं का तीव्र गति से पनपना तो लाजिमी है। कहा जाता है कि जुलाई और अगस्त में महाराष्ट्र के नांदेर जिले में इतनी अधिक बारिश हुई‌ की खेत खलिहानों‌ में पानी का बहाव पर्याप्त समय सीमा से ऊपर आ गया। जिसकी वजह से आम जन जीवन काफी हद तक प्रभावित हो गया है। किसानों पर तो मानो मुसीबतों का पहाड़ ही टूट पड़ा है। पर, आश्चर्य वाली बात यह है कि अधिकांश इलाकों में तो दूर दूर तक बारिश का नामो निशां तक नहीं है। परिणामस्वरूप फसलों का अधिकांश हिस्सा लगभग बर्बाद हो गया है।

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कुदरत का भी अजीब करिश्मा है। कहीं तो पानी की‌ बहुतायत है। तो कहीं बिना पानी फसल सूख सूख कर झड़ रही हैं। जो भी हो किसानों को ऐसे संकट की घड़ी में अपने आत्मबल को कायम रखना चाहिए। सरकार कदम कदम पर आपके साथ है। यदि एकजुट होकर आप समस्याओं से निपटेंगे, तो सफलता निश्चित है। आने वाली सुबह आपके लिए ढेर सारी खुशियाँ लेकर आएगी। कर्म करते रहिए। आपका परिश्रम कभी व्यर्थ नहीं जाएगा।
 सोयाबीन की फसल को प्रभावित करने वाले रोग व उनकी रोकथाम

सोयाबीन की फसल को प्रभावित करने वाले रोग व उनकी रोकथाम

सोयाबीन की बुवाई जून के प्रथम सप्ताह से शुरू हो जाती है। ऐसे में सोयाबीन की बंपर पैदावार लेने के लिए किसानों को इसकी उन्नत किस्में और बुवाई के सही तरीके की जानकारी होना बेहद जरूरी है। 

सोयाबीन के किसानों को अच्छे भाव मिलते हैं। क्योंकि सोयाबीन से तेल निकाला जाता है। इसके अलावा सोयाबीन से सोया बड़ी, सोया दूध, सोया पनीर आदि चीजें बनाई जाती है।

बतादें, कि सोयाबीन तिलहनी फसलों में आता है और इसकी खेती देश के कई राज्यों में होती है। विशेषकर मध्यप्रदेश में इसकी खेती प्रमुखता से की जाती है। 

सोयाबीन का भारत में 12 मिलियन टन उत्पादन होता है। यह भारत में खरीफ की फसल है। भारत में सबसे ज्यादा सोयाबीन मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान में उत्पादित होती है। 

मध्य प्रदेश का सोयाबीन उत्पादन में 45 प्रतिशत जबकि महाराष्ट्र का 40 प्रतिशत हिस्सा है। इसके अलावा बिहार में किसान इसकी खेती कर रहे है। मध्यप्रदेश के इंदौर में सोयाबीन रिसर्च सेंटर है।

बैक्टेरियल ब्लाइट / Bacterial blight 

इस रोग के कारण बीजों पर उभरे हुए या धंसे हुए घाव विकसित हो सकते हैं और वे सिकुड़े हुए और बदरंग हो सकते हैं। रोग के कारण पत्तियों पर छोटे, कोणीय, पारभासी, पानी से लथपथ, पीले से हल्के भूरे रंग के धब्बे दिखाई देते हैं। 

नई पत्तियाँ सबसे अधिक संक्रमित होती हैं और नष्ट हो जाती हैं। कोणीय घाव बड़े होते हैं और विलीन होकर बड़े, अनियमित मृत क्षेत्र बनाते हैं।

अधिक संक्रमण के कारण निचली पत्तियों का जल्दी झड़ाव हो सकता है और तनों और डंठलों पर बड़े, काले घाव विकसित हो जाते हैं। 

रोग नियंत्रण के उपाय 

  • रोग को नियंत्रण करने के लिए गर्मी में खेत की गहरी जुताई करें। 
  • बुवाई के लिए स्वस्थ/प्रमाणित बीजों का प्रयोग करें।
  • संक्रमित फसल अवशेषों को नष्ट कर दें। 
  • खड़ी फसल में रोग के नियंत्रण के लिए 250 पीपीएम (2.5 ग्राम/10 किग्रा बीज) की दर से स्ट्रेप्टोसाइक्लिन से बीज उपचार करें। 
  • इसके आलावा 250 पीपीएम (2.5 ग्राम/10 लीटर पानी) की दर से स्ट्रेप्टोसाइक्लिन के साथ 2 ग्राम/लीटर की दर से किसी भी तांबे के कवकनाशी का उपयोग करें। 

सर्कोस्पोरा लीफ ब्लाइट / Cercospora leaf blight 

संक्रमित पत्तियां चमड़े जैसी, गहरे, लाल बैंगनी रंग की दिखाई देती हैं।

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गंभीर संक्रमण से पत्ती के ऊतकों में तेजी से क्लोरोसिस और परिगलन होता है, जिसके परिणामस्वरूप पत्तियां गिर जाती हैं।

डंठलों और तनों पर घाव थोड़े धंसे हुए, लाल बैंगनी रंग के होते हैं ।

रोग नियंत्रण के उपाय 

  • बुवाई के लिए स्वस्थ/प्रमाणित बीजों का प्रयोग करें।
  • बीज उपचार थिरम + कार्बेन्डाजियम (2:1) @ 3 ग्राम/किग्रा बीज से करें।
  • मैंकोजेब या कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 2.5 ग्राम/लीटर या कार्बेन्डाजिम 1 ग्राम/लीटर का उपयोग करें। 

ड्राई रूट रोट / Dry root rot 

यह रोग तब होता है जब पौधे नमी के तनाव में होते हैं या नेमाटोड के हमले के कारण या मिट्टी के संघनन के कारण या पोषक तत्वों की कमी के कारण होते हैं। यह सोयाबीन के पौधे का सबसे आम बेसल तना और जड़ रोग है।

निचली पत्तियाँ हरितहीन हो जाती हैं और मुरझाकर सूखने लगती हैं।

रोगग्रस्त ऊतकों का रंग आमतौर पर भूरा हो जाता है। स्क्लेरोटिया काले पाउडर जैसे दिखते हैं इसलिए इस बीमारी को चारकोल रोट के नाम से जाना जाता है। 

जड़ों का काला पड़ना और टूटना सबसे आम लक्षण है। कवक शुष्क परिस्थितियों में मिट्टी और फसल के मलबे में जीवित रहता है। 

शुष्क परिस्थितियाँ, अपेक्षाकृत कम मिट्टी की नमी और पोषक तत्व और 25o C से 35o C तक का तापमान इस रोग के लिए अनुकूल है।

रोग नियंत्रण के उपाय 

  • रोग को नियंत्रण में रखने के लिए ग्रीष्म ऋतु में गहरी जुताई करें।
  • फसल का संतुलित उर्वरकीकरण सुनिश्चित करें।
  • खेत को अच्छी तरह से सूखा रखें। 
  • पिछले वर्ष की संक्रमित पराली को नष्ट कर दें।
  • टी. विराइड 4 ग्राम/किग्रा या पी. फ्लोरोसेंस 10 ग्राम/किलो बीज या कार्बेन्डाजिम या थीरम 2 ग्राम/किलो बीज से बीजोपचार करें।
  • कार्बेन्डाजिम 1 ग्राम/लीटर या पी. फ्लोरेसेंस/टी. विराइड 2.5 किग्रा/हेक्टेयर के साथ 50 किग्रा एफवाईएम के साथ स्पॉट ड्रेंचिंग करें।

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अल्टरनेरिया लीफ स्पॉट / Alternaria leaf spot

इस रोग से संक्रमित पौधों की फलियों में बीज छोटे एवं सिकुड़े हो जाते हैं और बीज पर गहरे, अनियमित, फैले हुए धँसे हुए क्षेत्र बन जाते हैं। 

पत्तों पर संकेंद्रित छल्लों के साथ भूरे, परिगलित धब्बों का दिखना, जो आपस में जुड़कर बड़े परिगलित क्षेत्रों का निर्माण करते हैं। मौसम के अंत में संक्रमित पत्तियाँ सूख जाती हैं और समय से पहले गिर जाती हैं। 

रोग नियंत्रण के उपाय 

  • बुवाई के लिए स्वस्थ/प्रमाणित बीजों का प्रयोग करें। 
  • कटाई के बाद खेतों से फसल अवशेषों को नष्ट करें। 
  • रोग नियंत्रण के लिए बीज उपचार थिरम + कार्बेन्डाजियम (2:1) @ 3 ग्राम/किग्रा बीज से करें। 
  • कड़ी फसल में रोग नियंत्रण के लिए मैंकोजेब या कॉपर कवकनाशी 2.5 ग्राम/लीटर या कार्बेन्डाजिम 1 ग्राम/लीटर का उपयोग करें। 

पॉड ब्लाइट / Anthracnose/pod blight 

इस रोग से संक्रमित बीज सिकुड़े हुए, फफूंदयुक्त और भूरे रंग के हो जाते हैं। बीजपत्रों पर लक्षण गहरे भूरे रंग के धंसे हुए कैंकर के रूप में दिखाई देते हैं। 

रोग की प्रारंभिक अवस्था में पत्तियों, तनों और फलियों पर अनियमित भूरे रंग के घाव दिखाई देते हैं। उन्नत चरणों में, संक्रमित ऊतक कवक के काले फलने वाले पिंडों से ढके होते हैं।

उच्च आर्द्रता के तहत, पत्तियों पर शिरा परिगलन, पत्ती का लुढ़कना, डंठलों पर कैंकर, समय से पहले पत्ते गिरना जैसे लक्षण दिखाई देते हैं। 

रोग नियंत्रण के उपाय 

  • बुवाई के लिए स्वस्थ या प्रमाणित बीजों का प्रयोग करें।
  • कटाई के तुरंत बाद खेत की साफ जुताई करके पौधों के अवशेषों को पूरी तरह हटा दें।
  • पिछले वर्ष की संक्रमित पराली को नष्ट कर दें।
  • खेत को अच्छी तरह से सूखा रखें। 
  • बीज के उचित नियंत्रण के लिए थाइरम या कैप्टान या कार्बेन्डाजिम 3 ग्राम/किग्रा से बीजोपचार करें। 
  • खड़ी फसल में स्प्रे के रूप में मैंकोजेब 2.5 ग्राम/लीटर या कार्बेन्डाजिम 1 ग्राम/लीटर का उपयोग करें।

मानसून सीजन में तेजी से बढ़ने वाली ये 5 अच्छी फसलें

मानसून सीजन में तेजी से बढ़ने वाली ये 5 अच्छी फसलें

मानसून का मौसम किसान भाइयों के लिए कुदरती वरदान के समान होता है। मानसून के मौसम होने वाली बरसात से उन स्थानों पर भी फसल उगाई जा सकती है, जहां पर सिंचाई के साधन नहीं हैं। पहाड़ी और पठारी इलाकों में सिंचाई के साधन नही होते हैं। इन स्थानों पर मानसून की कुछ ऐसी फसले उगाई जा सकतीं हैं जो कम पानी में होतीं हों। इस तरह की फसलों में दलहन की फसलें प्रमुख हैं। इसके अलावा कुछ फसलें ऐसी भी हैं जो अधिक पानी में भी उगाई जा सकतीं हैं। वो फसलें केवल मानसून में ही की जा सकतीं हैं। आइए जानते हैं कि कौन-कौन सी फसलें मानसून के दौरान ली जा सकतीं हैं।

मानसून सीजन में बढ़ने वाली 5 फसलें:

1.गन्ना की फसल

गन्ना कॉमर्शियल फसल है, इसे नकदी फसल भी कहा जाता है। गन्ने  की फसल के लिए 32 से 38 डिग्री सेल्सियस का तापमान होना चाहिये। ऐसा मौसम मानसून में ही होता है। गन्ने की फसल के लिए पानी की भी काफी आवश्यकता होती है। उसके लिए मानसून से होने वाली बरसात से पानी मिल जाता है। मानसून में तैयार होकर यह फसल सर्दियों की शुरुआत में कटने के लिए तैयार हो जाती है। फसल पकने के लिए लगभग 15 डिग्री सेल्सियश तापमान की आवश्यकता होती है। गन्ने की फसल केवल मानसून में ही ली जा सकती है। इसकी फसल तैयार होने के लिए उमस भरी गर्मी और बरसात का मौसम जरूरी होता है। गन्ने की फसल पश्चिमोत्तर भारत, समुद्री किनारे वाले राज्य, मध्य भारत और मध्य उत्तर और पूर्वोत्तर के क्षेत्रों में अधिक होती है। सबसे अधिक गन्ने का उत्पादन तमिलनाडु राज्य  में होता है। देश में 80 प्रतिशत चीनी का उत्पादन गन्ने से ही किया जाता  है। इसके अतिरिक्त अल्कोहल, गुड़, एथेनाल आदि भी व्यावसायिक स्तर पर बनाया जाता है।  चीनी की अंतरराष्ट्रीय व्यापारिक मांग को देखते हुए किसानों के लिए यह फसल अत्यंत लाभकारी होती है। [embed]https://www.youtube.com/watch?v=XeAxwmy6F0I&t[/embed]

2. चावल यानी धान की फसल

भारत चावल की पैदावार का बहुत बड़ा उत्पादक देश है। देश की कृषि भूमि की एक तिहाई भूमि में चावल यानी धान की खेती की जाती है। चावल की पैदावार का आधा हिस्सा भारत में ही उपयोग किया जाता है। भारत के लगभग सभी राज्यों में चावल की खेती की जाती है। चावलों का विदेशों में निर्यात भी किया जाता है। चावल की खेती मानसून में ही की जाती है क्योंकि इसकी खेती के लिए 25 डिग्री सेल्सियश के आसपास तापमान की आवश्यकता होती है और कम से कम 100 सेमी वर्षा की आवश्यकता होती है। मानसून से पानी मिलने के कारण इसकी खेती में लागत भी कम आती है। भारत के अधिकांश राज्यों व तटवर्ती क्षेत्रों में चावल की खेती की जाती है। भारत में धान की खेती पारंपरिक तरीकों से की जाती है। इससे यहां पर चावल की पैदावार अच्छी होती है। पूरे भारत में तीन राज्यों  पंजाब,पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश में सबसे अधिक चावल की खेती की जाती है। पर्वतीय इलाकों में होने वाले बासमती चावलों की क्वालिटी सबसे अच्छी मानी जाती है। इन चावलों का विदेशों को निर्यात किया जाता है। इनमें देहरादून का बासमती चावल विदेशों में प्रसिद्ध है। इसके अलावा पंजाब और हरियाणा में भी चावल केवल निर्यात के लिए उगाया जाता है क्योंकि यहां के लोग अधिकांश गेहूं को ही खाने मे इस्तेमाल करते हैं। चावल के निर्यात से पंजाब और हरियाणा के किसानों को काफी आय प्राप्त होती है। [embed]https://www.youtube.com/watch?v=QceRgfaLAOA&t[/embed]

3. कपास की फसल

कपास की खेती भी मानसून के सीजन में की जाती है। कपास को सूती धागों के लिए बहुमूल्य माना जाता है और इसके बीज को बिनौला कहते हैं। जिसके तेल का व्यावसायिक प्रयोग होता है। कपास मानसून पर आधारित कटिबंधीय और उष्ण कटिबंधीय फसल है। कपास के व्यापार को देखते हुए विश्व में इसे सफेद सोना के नाम से जानते हैं। कपास के उत्पादन में भारत विश्व का दूसरा बड़ा देश है। कपास की खेती के लिए 21 से 30 डिग्री सेल्सियश तापमान और 51 से 100 सेमी तक वर्षा की जरूरत होती है। मानसून के दौरान 75 प्रतिशत वर्षा हो जाये तो कपास की फसल मानसून के दौरान ही तैयार हो जाती है।  कपास की खेती से तीन तरह के रेशे वाली रुई प्राप्त होती है। उसी के आधार पर कपास की कीमत बाजार में लगायी जाती है। गुजरात, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश,हरियाणा, राजस्थान, कर्नाटक,तमिलनाडु और उड़ीसा राज्यों में सबसे अधिक कपास की खेती होती है। एक अनुमान के अनुसार पिछले सीजन में गुजरात में सबसे अधिक कपास का उत्पादन हुआ था। अमेरिका भारतीय कपास का सबसे बड़ा आयातक है। कपास का व्यावसायिक इस्तेमाल होने के कारण इसकी खेती से बहुत अधिक आय होती है। [embed]https://www.youtube.com/watch?v=nuY7GkZJ4LY[/embed]

4.मक्का की फसल

मक्का की खेती पूरे विश्व में की जाती है। हमारे देश में मक्का को खरीफ की फसल के रूप में जाना जाता है लेकिन अब इसकी खेती साल में तीन बार की जाती है। वैसे मक्का की खेती की अगैती फसल की बुवाई मई माह में की जाती है। जबकि पारम्परिक सीजन वाली मक्के की बुवाई जुलाई माह में की जाती है। मक्का की खेती के लिए उष्ण जलवायु सबसे उपयुक्त रहती है। गर्म मौसम की फसल है और मक्का की फसल के अंकुरण के लिए रात-दिन अच्छा तापमान होना चाहिये। मक्के की फसल के लिए शुरू के दिनों में भूमि ंमें अच्छी नमी भी होनी चाहिए। फसल के उगाने के लिए 30 डिग्री सेल्सियश का तापमान जरूरी है। इसके विकास के लिए लगभग तीन से चार माह तक इसी तरह का मौसम चाहिये। मक्का की खेती के लिए प्रत्येक 15 दिन में पानी की आवश्यकता होती है।मक्का के अंकुरण से लेकर फसल की पकाई तक कम से कम 6 बार पानी यानी सिंचाई की आवश्यकता होती है  अर्थात मक्का को 60 से 120 सेमी वर्षा की आवश्यकता होती है। मानसून सीजन में यदि पानी सही समय पर बरसता रहता है तो कोई बात नहीं वरना सिंचाई करने की आवश्यकता होती है। अन्यथा मक्का की फसल कमजोर हो जायेगी। भारत में उत्तर प्रदेश, बिहार, तमिलनाडु, मध्य प्रदेश, कर्नाटक में सबसे अधिक मक्का की खेती होती है। छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, जम्मू कश्मीर और हिमाचल में भी इसकी खेती की जाती है।

5.सोयाबीन की फसल

सोयाबीन ऐसा कृषि पदार्थ है, जिसका कई प्रकार से उपयोग किया जाता है। साधारण तौर पर सोयाबीन को दलहन की फसल माना जाता है। लेकिन इसका तिलहन के रूप में बहुत अधिक प्रयोग होने के कारण इसका व्यापारिक महत्व अधिक है। यहां तक कि इसकी खल से सोया बड़ी तैयार की जाती है, जिसे सब्जी के रूप में प्रमुखता से इस्तेमाल किया जाता है। सोयाबीन में प्रोटीन, कार्बोहाइडेट और वसा अधिक होने के कारण शाकाहारी मनुष्यों के लिए यह बहुत ही फायदे वाला होता है। इसलिये सोयाबीन की बाजार में डिमांड बहुत अधिक है। इस कारण इसकी खेती करना लाभदायक है। सोयाबीन की खेती मानसून के दौरान ही होती है। इसकी बुवाई जुलाई के अन्तिम सप्ताह में सबसे उपयुक्त होती है। इसकी फसल उष्ण जलवायु यानी उमस व गर्मी तथा नमी वाले मौसम में की जाती है। इसकी फसल के लिए 30-32 डिग्री सेल्सियश तापमान की आवश्यकता होती है और फसल पकने के समय 15 डिग्री सेल्सियश के तापमान की जरूरत होती है।  इस फसल के लिए 600 से 850 मिलीमीटर तक वर्षा चाहिये। पकने के समय कम तापमान की आवश्यकता होती है। [embed]https://www.youtube.com/watch?v=AUGeKmt9NZc&t[/embed]
महाराष्ट्र में रबी की फसलों की बुवाई को लेकर चिंतित किसान, नहीं मिल पाया अब तक मुआवजा

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महाराष्ट्र के नांदेड़ जनपद में मूसलाधार बारिश के कहर से करीब डेढ़ लाख हेक्टेयर भूमि में सोयाबीन की फसल नष्ट हो चुकी है। राज्य सरकार द्वारा मुआवजे के रूप में मिलने वाली आर्थिक सहायता में विलंब होने के चलते किसानों को रबी सीजन की फसलों की बुवाई करने हेतु आर्थिक संकटों से जूझना पड़ रहा है। किसान इधर उधर से कर्ज लेकर रबी सीजन की बुवाई हेतु खाद एवं बीज की व्यवस्था कर रहे हैं। महाराष्ट्र राज्य के नांदेड़ जनपद में पुनः अत्यधिक बरसात से किसान गंभीर रूप से प्रभावित हो चुके हैं। किसानों की पकी पकायी फसल बर्बाद चुकी है। किसानों द्वारा बताया गया है कि महाराष्ट्र राज्य सरकार द्वारा कोई आर्थिक सहायता नहीं मिली है। साथ ही, रबी सीजन का समय भी आरम्भ हो चुका है। इस वजह से उनको बेहद आर्थिक समस्या का सामना करना पड़ रहा है, ऐसे में रबी फसलों की बुवाई करना किसानों के लिए चुनौतीपूर्ण है। राज्य के कुछ जनपदों में अब तक फसलों में हुई बर्बादी का पंचनामा भी नहीं हो पाया है। महाराष्ट्र के भंडारा जनपद में तो मजबूरी में किसान धान को बेहद न्यूनतम भाव में बेच रबी सीजन की फसलों की बुवाई हेतु बीज खरीद रहे हैं। बतादें कि मराठवाड़ा में सर्वाधिक सोयाबीन का उत्पादन किया जाता है। मराठवाड़ा के किसान पूर्णतया सोयाबीन की फसल पर निर्भर रहते हैं।

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लातूर निवासी किसान अंकित थोराट ने क्या कहा है ?

महाराष्ट्र राज्य के लातूर जनपद निवासी अंकित थोराट का कहना है, कि उनके द्वारा स्वयं की दो एकड़ भूमि में सोयाबीन की फसल की गयी। लेकिन पैदावार लेने से पूर्व ही आपदा के रूप में आयी प्रचंड बारिश ने उनकी फसल को बुरी तरह चौपट कर दिया। फसल बर्बाद होने के बाद भी अब तक उनको कोई आर्थिक सहायता नहीं प्राप्त हो पायी है। इस वजह से उनको रबी फसल की तैयारी करने में बहुत परेशानी हो रही है, क्योंकि वह पूर्णतया कृषि पर ही निर्भर रहते थे। हालाँकि महाराष्ट्र के कृषि मंत्री अब्दुल सत्तार जी ने कहा यदि आवश्यकता हुई तो केंद्र सरकार से भी सहायता लेंगे। साथ ही, किसानों की अतिशीघ्र सहायता करने का पूरा प्रयास करेंगे।
खुशखबरी:किसानों को मिलेगी घर बैठे कीटनाशक दवाएं नहीं काटने पड़ेंगे दुकानों के चक्कर

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नवीन नियमानुसार कीटनाशक अब एमाज़ॉन (Amazon.com) व फ्लिपकार्ट (Flipkart.com) जैसी ई-कॉमर्स (E-commerce) कंपनियों के माध्यम से बेचने की स्वीकृति प्राप्त हो चुकी है। इन कंपनियों द्वारा कानूनी लाइसेंस व नियमों के अनुसार कीटनाशक बेचे जा सकते हैं। दरअसल किसानों को अच्छे कीटनाशक लेने हेतु विभिन्न दुकानों पर समय व ऊर्जा बर्बाद करके जाना होता था। परंतु फिलहाल ऐसे कार्यों के लिए कहीं जाना नहीं पड़ेगा सब कुछ घर बैठे उपलब्ध होगा। आज किसान फ्लिपकार्ट व एमाज़ॉन जैसी ई-कॉमर्स साइट्स के जरिये भी कीटनाशक उपलब्ध कर सकते हैं। केंद्र सरकार द्वारा ऐसे ऑनलाइन शॉपिंग प्लेटफॉर्म्स को कीटनाशक बेचने हेतु स्वीकृति दे दी है। दरअसल, कीटनाशक को बेचने के आरंभ से पूर्व इन कंपनियों द्वारा कानूनी प्रक्रिया संपन्न करनी बहुत आवश्यक है, कानूनी लाइसेंस के बाद ही किसानों को कीटनाशकों की होम डिलीवरी की जाएगी।


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केवल कानूनी लाइसेंस प्राप्त कंपनियां ही बेच पाएंगी कीटनाशक

देश में ऑनलाइन खरीददारी हेतु जानीमानी कंपनियां फ्लिपकार्ट (Flipkart.com) व एमाज़ॉन (Amazon.com) को कीटनाशक बेचने हेतु कानूनी तौर पर स्वीकृति प्राप्त हो गयी है। नए नियमों के अनुसार, इन कंपनियों द्वारा कीटनाशक बेचने पर प्रतिबंध लगाया है। सरकार से लाइसेंस लेना जरुरी है, जिसके बाद कुछ नियमों को पालन करते हुए ये कंपनियां कीटनाशक बेच सकती हैं, दरअसल, लाइसेंस को सत्यापित करवाने की जिम्मेदारी स्वयं ई-कॉमर्स (E-commerce) कंपनियों की ही है। केंद्र सरकार की इस पहल से किसानों को प्रत्यक्ष रूप से लाभ मिलेगा।


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किसानों को उचित व बेहतरीन कीटनाशक खरीदने हेतु ना ज्यादा पैसा खर्च करने की आवश्यकता है और ना ही दुकानों का बिना बात भ्रमण करने की कोई जरुरत है। शीघ्र ही आगामी दिनों में इन कंपनियों के एप्स डाउनलोड करके आवश्यकतानुसार कीटनाशक का ऑनलाइन ऑर्डर देकर होम डिलीवरी से मंगवा सकेंगे। अनुमान है, कि फ्लिपकार्ट व एमाज़ॉन जैसी वेबसाइटों पर कीटनाशक उचित मूल्य पर मिल सकेंगे, जिससे कीटनाशकों के विपणन को लेकर कंपनियों में भी प्रतिस्पर्धा बढ़ जाएगी। इसकी सहायता से कीटनाशक की उत्पादक कंपनियों को भी नवीन बाजार प्राप्त होगा। हल के दिनों में जलवायु परिवर्तन से फसलों पर काफी दुष्प्रभाव पड़ रहा है। दिनों दिन हो रहे मौसमिक बदलाव से फसलें चौपट होती जा रही हैं, तो वहीं कुछ क्षेत्रों में कीटों के आक्रमण ने भी फसलों को बेहद क्षति पहुँचाई है। विभिन्न क्षेत्रों में तो ये कीट फसल के तने से लेकर जड़ व पत्तियों को नष्ट कर पैदावार को प्रभावित कर रहे हैं। पिछले सीजन में सोयाबीन की फसल का भी यही हाल हुआ था।